प्राचीनता का भविष्य
लेखक : हेलेना नॉर्बर्ग-होज़
ISBN : 978-93-82400-01-1
224 pages | Paperback
About the Book
लद्दाख या "छोटा तिब्बत" की संस्कृति, परंपरा तथा परिवर्तनों पर एक चलता फिरता दर्पण है "प्राचीनता का भविष्य"। यह पुस्तक विकराल होती वैशविक अर्थव्यवस्था की सच्चाई उजागर करने के साथ ही आर्थिक स्थानीकरण के पक्ष में समर्थन जुटाने की ज़रूरत के लिए अंतिम चेतावनी भी देती है।
1975 में, हेलेना नॉर्बर्ग-होज़ जब पहली बार लद्दाख़ आयी, तब परिवार एवं समुदाय स्वस्थ एवं सुदृढ़ थे, लोग सौम्य थे और अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर। फिर विकास की एक लहार आयी। गाठ तीन दशकों से हिमालय का यह हिस्सा बाहरी बाजारों और पश्चिम आधारित प्रगति की चपेट में आ गया है। इसके नतीजे बड़े ही भयावह हैं - प्रदूषित हवा और पानी से लेकर खाने संबंधी विकार से लेकर सांप्रदायिक झगड़े - सब कुछ पहली बार।
लेकिन यह कहानी निराशा से दूर, आशा की ओर ले जाती है | हेलेना नॉर्बर्ग-होज़ का तर्क है कि यह सामाजिक और पर्यावरणीय विघटन न तो अपरिहार्य है और न ही क्रम-विकास की देन, अपितु एक सोची समझी चल के तहत राजनीतिक और आर्थिक फैसलों का उत्पाद है। अपने नए "बाद मेँ" में वे लिखती है कि लद्दाख की संस्कृति विरासत को पुनर्स्थापित करने के प्रेरणादायी प्रयास शुरू हो चुके हैं, जिसमे पाँच हज़ार महिलाओ का सशक्त समूह और गॉव के स्टार पर नवीनिकरण करने योग्य ऊर्जा परियोजनाएँ शामिल है। यह विष्वभर में चल रहे स्थानीकरण आंदोलनों के बारे में भी बतलाती है कि किस तरह उन्होंने शोषण की अर्थव्यवस्था को त्याग कर स्थान ादगारित संस्कृति की और देखना शुरू कर दिया है, जो फिर से समुदाय को सुदृढ़ करने और प्रकृति से हमारे संबंधो को मजबूत बनाने का काम करती है।
हेलेना नॉर्बर्ग-होज़ अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक आलोचक, लेखिका और पर्यावरणविद होने के साथ-साथ विषव्यापि स्थानीकरण आंदोलन की प्रेणता भी है। 1975 से वे पारम्परिक विकास की सम्भावनाओ की तलाश करने हेतु लद्दाख आ रही है। इन प्रयासों के लिए उन्हें राइट लाइवलीहुड पुरस्कार मिला, जो नोबल प्रस्कार का विकल्प है।